
राह में काँटे एक दो नहीं होते राह काँटों से भरी होती है मंज़िल उस राह के आखिरी छौर पर खड़ी होती है जहाँ हर कदम पर मिलती एक नयी चोटी है देख उसे जिनके हौंसले डगमगाते हैं वे मंज़िल को भुला काँटों मे उलझ जाते हैं जिनकी निगाह मंज़िल पर होती है वे काँटों पर ही चलकर मंज़िल को पाते हैं.
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